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किं स ऋध॑क्कृणव॒द्यं स॒हस्रं॑ मा॒सो ज॒भार॑ श॒रद॑श्च पू॒र्वीः। न॒ही न्व॑स्य प्रति॒मान॒मस्त्य॒न्तर्जा॒तेषू॒त ये जनि॑त्वाः ॥४॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

kiṁ sa ṛdhak kṛṇavad yaṁ sahasram māso jabhāra śaradaś ca pūrvīḥ | nahī nv asya pratimānam asty antar jāteṣūta ye janitvāḥ ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

कि॒म्। सः। ऋध॑क्। कृ॒ण॒व॒त्। यम्। स॒हस्र॑म्। मा॒सः। ज॒भार॑। श॒रदः॑। च॒। पू॒र्वीः। न॒हि। नु। अ॒स्य॒। प्र॒ति॒ऽमान॑म्। अस्ति॑। अ॒न्तः। जा॒तेषु॑। उ॒त। ये। जनि॑ऽत्वाः ॥४॥

ऋग्वेद » मण्डल:4» सूक्त:18» मन्त्र:4 | अष्टक:3» अध्याय:5» वर्ग:25» मन्त्र:4 | मण्डल:4» अनुवाक:2» मन्त्र:4


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

अब उत्तम ऐश्वर्यवान् पुरुष के लिये काल दृष्टान्त से अच्छे मार्ग का उपदेश अगले मन्त्र में करते हैं ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे मनुष्यो ! (ये) जो (जनित्वाः) उत्पन्न होनेवाले के (अन्तः) बीच (जातेषु) उत्पन्न हुए पदार्थों में (पूर्वीः) अनादि काल से सिद्ध (शरदः) शरद् ऋतुओं को जानते हैं (उत) और जो (अस्य) इसका (प्रतिमानम्) परिमाण साधन (नही) नहीं (अस्ति) है वा (मासः) चैत्र आदि मास (जभार) पोषण करे और (यम्) जिसे (सहस्रम्) सङ्ख्यारहित (ऋधक्) सत्य (कृणवत्) प्रसिद्ध करे (सः) वह (च) और (किम्) किस को (नु) निश्चय से प्राप्त होवे ॥४॥
भावार्थभाषाः - हे मनुष्यो ! जैसे काल, मास आदि अवयवों को धारण करता है और आप अनन्त हुआ संसार में उत्पन्न हुओं में नापनेवाला है, वैसे ही आप लोग भी करो ॥४॥
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

अथेन्द्राय कालदृष्टान्तेन सन्मार्गमुपदिशति ॥

अन्वय:

हे मनुष्या ! ये जनित्वा अन्तर्जातेषु पूर्वीः शरदो जानन्त्युत यदस्य प्रतिमानं नह्यस्ति मासो जभार यं सहस्रमृधक् कृणवत् स च किन्न्वाप्नुयात् ॥४॥

पदार्थान्वयभाषाः - (किम्) (सः) (ऋधक्) सत्यम् (कृणवत्) कुर्यात् (यम्) (सहस्रम्) असङ्ख्यम् (मासः) चैत्रादिः (जभार) (शरदः) शरदाद्यृतून् (च) (पूर्वीः) सनातनीः (नही) अत्र निपातस्य चेति दीर्घः। (नु) (अस्य) (प्रतिमानम्) परिमाणसाधनम् (अस्ति) (अन्तः) आभ्यन्तरे (जातेषु) उत्पन्नेषु (उत) अपि (ये) (जनित्वाः) ये जनिष्यन्ते ते ॥४॥
भावार्थभाषाः - हे मनुष्या ! यथा कालो मासाद्यवयवान् धरति स्वयमनन्तः सञ्जगति जातेषु परिमापकोऽस्ति तथैव यूयमपि कुरुत ॥४॥
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - हे माणसांनो! जसा काळ महिने इत्यादी अवयवांना धारण करतो व अनंत जगात उत्पन्न झालेल्यांची गणना (मोजमाप) करतो, तसे तुम्हीही करा. ॥ ४ ॥